ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम ॥ १॥ अग्नि पूर्वेभिॠषिभिरिड्यो नूतनैरुत । स देवाँ एह वक्षति ॥ २॥ अग्निना रयिमश्न्वत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम्
ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम ॥ १॥ अग्नि पूर्वेभिॠषिभिरिड्यो नूतनैरुत । स देवाँ एह वक्षति ॥ २॥ अग्निना रयिमश्न्वत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम्