नमोस्तु ते महादेवि शिवे कल्याणि शाम्भवि ।
प्रसीद वेदविनुते जगदम्ब नमोस्तुते ॥१॥
जगतामादिभूता त्वं जगत्त्वं जगदाश्रया ।
एकाऽप्यनेकरूपासि जगदम्ब नमोस्तुते ॥२॥
नमोस्तु ते महादेवि शिवे कल्याणि शाम्भवि ।
प्रसीद वेदविनुते जगदम्ब नमोस्तुते ॥१॥
जगतामादिभूता त्वं जगत्त्वं जगदाश्रया ।
एकाऽप्यनेकरूपासि जगदम्ब नमोस्तुते ॥२॥
अश्विन शुद्धपक्षी अंबा बैसली सिंहासनी हो|
प्रतिपदेपासूनी ती घटस्थापना करूनी हो|
मूलमंत्र जप करूनी भोवते रक्षक ठेवूनी हो|
ब्रम्हाविष्णूरुद्र आईचे पूजन करीती हो|