नारायण अष्टकम्

विष्णु नीलकलेवरं विस्तृत सर्व संसारम्
भूर्भुवो स्वर्गमंडलं अनलसप्तपाताळम्
दशदिशित्वयिव्याप्तम् समस्तविश्वनायकम्
तव चरणपंकजं निरन्तरं भजाम्यहम्॥२॥

अनंतशेषगायनं नवीनलीलावर्णनम्
नवीननाममोहनं नित्यनवीनयौवनम्
अपूर्वसौन्दर्यघनं प्रेमरसे प्रतिक्षणम्
तव चरणपंकजं निरन्तरं भजाम्यहम् ॥४॥

त्वमादैवनारायणं सदापातालेशयनम्
सदैवविश्वधारणं सृष्टिसंहारपालनम्
नाभ्याः पंकजविस्तृतं तदैव ब्रह्मासम्भूतम्
तव चरणपंकजं निरन्तरं भजाम्यहम् ॥६॥

अनंतविश्वनायकं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्
अनंतरूपधारणं कुरु सर्वस्य पालनम्
तव रूप चिदानंदम् नवेत्ति असुर सुरम्
तव चरणपंकजं निरन्तरं भजाम्यहम् ॥८॥


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