गुरुमूर्तिं चिदाकाशं सच्चिदानन्दविग्रहं ।
निर्विकल्पं निराबाधं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ १ ॥
योगातीतं गुणातीतं सर्वरक्षाकरं विभुं ।
सर्वदुःखहरं देवं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ २ ॥
अवधूतं सदाध्यानम् औदुम्बरसुशोभितं ।
अनघाप्रिया विभुं देवं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ ३ ॥
निराकारं निराभासं ब्रह्मविष्णुशिवात्मकं ।
निर्गुणं निष्कलं शान्तं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ ४ ॥
अनसूयासुतं देवं अत्रिवम्शकुलोद्भवं ।
दिगम्बरं महातेजं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ ५ ॥
सह्याद्रिवासिनं दत्तं आत्मज्ञानप्रदायकं ।
अखण्डमण्डलाकारं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ ६ ॥
पञ्चयज्ञप्रियं देवं पञ्चरूपसुशोभितं ।
गुरुपरम्परं वन्दे दत्तमानन्दमाश्रये ॥ ७ ॥
दत्तमानन्दाष्टकं यः पठेत् सर्वविद्या जयं लभेत् ।
दत्तानुग्रहफलं प्राप्तं दत्तमानन्दमाश्रये ॥ ८ ॥
|| फलश्रुति ||
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति श्रीदत्तश्शरणं मम ॥
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