श्री-कमलापति-अष्टकम्

श्री कमलापत्यष्टकम् | Shri Kamalapati Ashtakam | श्री कमलापति अष्टकम्

अलिकुलासितकोमलकुन्तलं विमलपीतदुकूलमनोहरम् ।
जलधिजाश्रितवामकलेवरं भजत रे मनुजाः कमलापतिम् ॥ २॥

मनुजदेहमिमं भुवि दुर्लभं समधिगम्य सुरैरपि वाञ्छितम् ।
विषयलम्पटतामपहाय वै भजत रे मनुजाः कमलापतिम् ॥ ४॥

सकलमेव चलं सचराचरं जगदिदं सुतरां धनयौवनम् ।
समवलोक्य विवेकदृशा द्रुतं भजत रे मनुजाः कमलापतिम् ॥ ६॥

मुनिवरैरनिशं हृदि भावितं शिवविरिञ्चिमहेन्द्रनुतं सदा ।
मरणजन्मजराभयमोचनं भजत रे मनुजाः कमलापतिम् ॥ ८॥

हरिपदाष्टकमेतदनुत्तमं परमहंसजनेन समीरितम् ।
पठति यस्तु समाहितचेतसा व्रजति विष्णुपदं स नरो ध्रुवं ॥ ९॥

इति श्रीमत्परमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं कमलापत्यष्टकं समाप्तं ॥


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