महामाय़ा अष्टकम्

महामाय़ा अष्टकम् | Mahamaya Ashtakam

नारीणां च शंखिन्यापि हस्तिनि वा चित्रिणि
पद्मगन्धा पुष्परूपा सम्मोहिनि पद्मिनि
मातृ-पुत्री-भग्नि-भार्य़ा सर्वरूपा भवानि
नमः नमः महामाय़े ! भवभय-खण्डिनि || २ ||

खड्ग-चक्र-हस्तेधारि शंखिनि-सुनादिनि
संमोहना-रूपा-नारि हृदय-विदारिणि
अहंकार-कामरूपा-भुवन-विळासिनि
नमः नमः महामाय़े ! जगत-प्रकाशिनि || ४ ||

धन-जन-तन-मान रूपेण त्वम् संस्थिता
काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद वापि मूढता
निद्राहार-काम-भय़ पशुतुल्य़ जीवनात्
नमः नमः महामाय़े ! कुरु मुक्त बन्धनात् || ६ ||

नवदुर्गा-महाकाळि सर्वाङ्गभूषावृत्ताम्
भुवनेश्वरि-मातङ्गि हन्तु मधुकैटभम्
विमळा-तारा-षोड़शि हस्ते खड्ग धारिणि
धुमावति-मा-बगळा महिषासुर मर्द्धिनि
बाळात्रिपुरासुन्दरि त्रिभुवन मोहिनि
नमः नमः महामाय़े ! सर्वदुःख हारिणि || ८ ||

|| इति श्री कृष्णदासः विरचितं महामाय़ा अष्टकम् यः पठति सः भव सागर निस्तरति ||


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