रामरघुनाथ अष्टकम्

श्री रामरघुनाथ अष्टकम् | Ram Raghunath Ashtakam

मण्डितधरणी खण्डिततनुनतमस्तकेभूषित क्लेशभारम्
सम्भबतियुगेयुगे नानाकृतधृतरूप अरूपस्वरूप शस्त्रधरम्
पापासुरनिधन साधुपरित्राण दरिद्रदारुण त्राणमूर्त्तिम्
दिव्य कान्ति तनु नेत्र शशी भानु रामरघुनाथ पदौभजे ॥२॥

अहल्यातारक बलीसंहारक शत्रुविनाशक विश्वदेवम्
प्रेमप्रदायक ब्रह्माण्डनायक तारणपतक सत्यप्रियम्
दशमुखमर्द्धन भक्तप्राणधन नित्यनिरञ्जन सर्वसारम्
सर्वमनोरञ्जन सर्वमानभञ्जन रामरघुनाथ पदौभजे ॥४॥

मन्दरमान्दर सानन्दसुन्दर तरुणधारूणपति सृष्टिधरम्
सदाप्रजाबत्सल कोमलउत्पल विमलश्यामल कलेवरम्
जानकीवल्लभ तवकरपल्लव सौरभदुर्लभ तत्त्वसारम्
मोक्ष्यप्रदायक आनन्ददायक रामरघुनाथ पदौभजे ॥६॥

तव अनुस्मरण तव परिचिन्तन प्रध्यानपठन नित्यसुखम्
मुखेतबगापन तव लीलावर्णन तव नामेमार्जन शुद्धमयम्
क्लेशक्लेशमहाक्लेश भवसुरा देबेश रक्षाकुरुस्वामी गोरक्षकम्
हे रघुनन्दन सर्वक्लेशखण्डन रामरघुनाथ पदौभजे ॥८॥

॥ इति श्री कृष्णदासः विरचित श्री रामरघुनाथ अष्टकम् सम्पूर्णम्॥


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