जनक उवाच ॥
प्रकृत्या शून्यचित्तो यः प्रमादाद् भावभावनः ।
निद्रितो बोधित इव क्षीणसंस्मरणो हि सः ॥ १४-१॥
क्व धनानि क्व मित्राणि क्व मे विषयदस्यवः ।
क्व शास्त्रं क्व च विज्ञानं यदा मे गलिता स्पृहा ॥ १४-२॥
विज्ञाते साक्षिपुरुषे परमात्मनि चेश्वरे ।
नैराश्ये बन्धमोक्षे च न चिन्ता मुक्तये मम ॥ १४-३॥
अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिः स्वच्छन्दचारिणः ।
भ्रान्तस्येव दशास्तास्तास्तादृशा एव जानते ॥ १४-४॥
अष्टावक्र गीता
अष्टावक्र गीता अध्याय पहिला | Ashtavakra Geeta Adhyay 1
अष्टावक्र गीता अध्याय दुसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 2
अष्टावक्र गीता अध्याय तिसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 3
अष्टावक्र गीता अध्याय चौथा | Ashtavakra Geeta Adhyay 4
अष्टावक्र गीता अध्याय पाचवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 5
अष्टावक्र गीता अध्याय सहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 6
अष्टावक्र गीता अध्याय सातवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 7
अष्टावक्र गीता अध्याय आठवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 8
अष्टावक्र गीता अध्याय नववा | Ashtavakra Geeta Adhyay 9
अष्टावक्र गीता अध्याय दहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 10
अष्टावक्र गीता अध्याय अकरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 11
अष्टावक्र गीता अध्याय बारावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 12
अष्टावक्र गीता अध्याय तेरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 13
अष्टावक्र गीता अध्याय पंधरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 15
अष्टावक्र गीता अध्याय सोळावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 16
अष्टावक्र गीता अध्याय सतरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 17
अष्टावक्र गीता अध्याय अठरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 18
अष्टावक्र गीता अध्याय एकोणीसवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 19
अष्टावक्र गीता अध्याय विसावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 20