जनक उवाच ॥
मय्यनन्तमहाम्भोधौ विश्वपोत इतस्ततः ।
भ्रमति स्वान्तवातेन न ममास्त्यसहिष्णुता ॥ ७-१॥
मय्यनन्तमहाम्भोधौ जगद्वीचिः स्वभावतः ।
उदेतु वास्तमायातु न मे वृद्धिर्न च क्षतिः ॥ ७-२॥
मय्यनन्तमहाम्भोधौ विश्वं नाम विकल्पना ।
अतिशान्तो निराकार एतदेवाहमास्थितः ॥ ७-३॥
नात्मा भावेषु नो भावस्तत्रानन्ते निरञ्जने ।
इत्यसक्तोऽस्पृहः शान्त एतदेवाहमास्थितः ॥ ७-४॥
अहो चिन्मात्रमेवाहमिन्द्रजालोपमं जगत् ।
इति मम कथं कुत्र हेयोपादेयकल्पना ॥ ७-५॥
अष्टावक्र गीता

अष्टावक्र गीता अध्याय पहिला | Ashtavakra Geeta Adhyay 1

अष्टावक्र गीता अध्याय दुसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 2

अष्टावक्र गीता अध्याय तिसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 3

अष्टावक्र गीता अध्याय चौथा | Ashtavakra Geeta Adhyay 4

अष्टावक्र गीता अध्याय पाचवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 5

अष्टावक्र गीता अध्याय सहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 6

अष्टावक्र गीता अध्याय आठवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 8

अष्टावक्र गीता अध्याय नववा | Ashtavakra Geeta Adhyay 9

अष्टावक्र गीता अध्याय दहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 10

अष्टावक्र गीता अध्याय अकरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 11

अष्टावक्र गीता अध्याय बारावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 12

अष्टावक्र गीता अध्याय तेरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 13

अष्टावक्र गीता अध्याय चौदावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 14

अष्टावक्र गीता अध्याय पंधरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 15

अष्टावक्र गीता अध्याय सोळावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 16

अष्टावक्र गीता अध्याय सतरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 17

अष्टावक्र गीता अध्याय अठरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 18

अष्टावक्र गीता अध्याय एकोणीसवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 19

अष्टावक्र गीता अध्याय विसावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 20