जनक उवाच ॥
हन्तात्मज्ञानस्य धीरस्य खेलतो भोगलीलया ।
न हि संसारवाहीकैर्मूढैः सह समानता ॥ ४-१॥
यत् पदं प्रेप्सवो दीनाः शक्राद्याः सर्वदेवताः ।
अहो तत्र स्थितो योगी न हर्षमुपगच्छति ॥ ४-२॥
तज्ज्ञस्य पुण्यपापाभ्यां स्पर्शो ह्यन्तर्न जायते ।
न ह्याकाशस्य धूमेन दृश्यमानापि सङ्गतिः ॥ ४-३॥
आत्मैवेदं जगत्सर्वं ज्ञातं येन महात्मना ।
यदृच्छया वर्तमानं तं निषेद्धुं क्षमेत कः ॥ ४-४॥
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्ते भूतग्रामे चतुर्विधे ।
विज्ञस्यैव हि सामर्थ्यमिच्छानिच्छाविवर्जने ॥ ४-५॥
आत्मानमद्वयं कश्चिज्जानाति जगदीश्वरम् ।
यद् वेत्ति तत्स कुरुते न भयं तस्य कुत्रचित् ॥ ४-६
अष्टावक्र गीता

अष्टावक्र गीता अध्याय पहिला | Ashtavakra Geeta Adhyay 1

अष्टावक्र गीता अध्याय दुसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 2

अष्टावक्र गीता अध्याय तिसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 3

अष्टावक्र गीता अध्याय पाचवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 5

अष्टावक्र गीता अध्याय सहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 6

अष्टावक्र गीता अध्याय सातवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 7

अष्टावक्र गीता अध्याय आठवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 8

अष्टावक्र गीता अध्याय नववा | Ashtavakra Geeta Adhyay 9

अष्टावक्र गीता अध्याय दहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 10

अष्टावक्र गीता अध्याय अकरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 11

अष्टावक्र गीता अध्याय बारावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 12

अष्टावक्र गीता अध्याय तेरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 13

अष्टावक्र गीता अध्याय चौदावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 14

अष्टावक्र गीता अध्याय पंधरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 15

अष्टावक्र गीता अध्याय सोळावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 16

अष्टावक्र गीता अध्याय सतरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 17

अष्टावक्र गीता अध्याय अठरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 18

अष्टावक्र गीता अध्याय एकोणीसवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 19

अष्टावक्र गीता अध्याय विसावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 20