अष्टावक्र उवाच ॥
न ते सङ्गोऽस्ति केनापि किं शुद्धस्त्यक्तुमिच्छसि ।
सङ्घातविलयं कुर्वन्नेवमेव लयं व्रज ॥ ५-१॥
उदेति भवतो विश्वं वारिधेरिव बुद्बुदः ।
इति ज्ञात्वैकमात्मानमेवमेव लयं व्रज ॥ ५-२॥
प्रत्यक्षमप्यवस्तुत्वाद् विश्वं नास्त्यमले त्वयि ।
रज्जुसर्प इव व्यक्तमेवमेव लयं व्रज ॥ ५-३॥
समदुःखसुखः पूर्ण आशानैराश्ययोः समः ।
समजीवितमृत्युः सन्नेवमेव लयं व्रज ॥ ५-४॥
अष्टावक्र गीता
अष्टावक्र गीता अध्याय पहिला | Ashtavakra Geeta Adhyay 1
अष्टावक्र गीता अध्याय दुसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 2
अष्टावक्र गीता अध्याय तिसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 3
अष्टावक्र गीता अध्याय चौथा | Ashtavakra Geeta Adhyay 4
अष्टावक्र गीता अध्याय सहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 6
अष्टावक्र गीता अध्याय सातवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 7
अष्टावक्र गीता अध्याय आठवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 8
अष्टावक्र गीता अध्याय नववा | Ashtavakra Geeta Adhyay 9
अष्टावक्र गीता अध्याय दहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 10
अष्टावक्र गीता अध्याय अकरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 11
अष्टावक्र गीता अध्याय बारावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 12
अष्टावक्र गीता अध्याय तेरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 13
अष्टावक्र गीता अध्याय चौदावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 14
अष्टावक्र गीता अध्याय पंधरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 15
अष्टावक्र गीता अध्याय सोळावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 16
अष्टावक्र गीता अध्याय सतरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 17
अष्टावक्र गीता अध्याय अठरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 18
अष्टावक्र गीता अध्याय एकोणीसवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 19
अष्टावक्र गीता अध्याय विसावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 20