जनक उवाच ॥
आकाशवदनन्तोऽहं घटवत् प्राकृतं जगत् ।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः ॥ ६-१॥
महोदधिरिवाहं स प्रपञ्चो वीचिसन्निभः ।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः ॥ ६-२॥
अहं स शुक्तिसङ्काशो रूप्यवद् विश्वकल्पना ।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः ॥ ६-३॥
अहं वा सर्वभूतेषु सर्वभूतान्यथो मयि ।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः ॥ ६-४॥
अष्टावक्र गीता
अष्टावक्र गीता अध्याय पहिला | Ashtavakra Geeta Adhyay 1
अष्टावक्र गीता अध्याय दुसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 2
अष्टावक्र गीता अध्याय तिसरा | Ashtavakra Geeta Adhyay 3
अष्टावक्र गीता अध्याय चौथा | Ashtavakra Geeta Adhyay 4
अष्टावक्र गीता अध्याय पाचवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 5
अष्टावक्र गीता अध्याय सातवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 7
अष्टावक्र गीता अध्याय आठवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 8
अष्टावक्र गीता अध्याय नववा | Ashtavakra Geeta Adhyay 9
अष्टावक्र गीता अध्याय दहावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 10
अष्टावक्र गीता अध्याय अकरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 11
अष्टावक्र गीता अध्याय बारावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 12
अष्टावक्र गीता अध्याय तेरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 13
अष्टावक्र गीता अध्याय चौदावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 14
अष्टावक्र गीता अध्याय पंधरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 15
अष्टावक्र गीता अध्याय सोळावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 16
अष्टावक्र गीता अध्याय सतरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 17
अष्टावक्र गीता अध्याय अठरावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 18
अष्टावक्र गीता अध्याय एकोणीसवा | Ashtavakra Geeta Adhyay 19
अष्टावक्र गीता अध्याय विसावा | Ashtavakra Geeta Adhyay 20